Geet,Geetkaari Aur Faiz-3
जाबज़ा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथडे हुए खून में नहलाये हुए
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे…
फैज़ साहिब की नज़्म ‘मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न मांग’ बेशक सबने पढ़ी सुनी होगी! इस नज़्म में वो सब खूबियाँ हैं जिनका ज़िकर दिलीप साहिब ने किया है! सिर्फ इस नज़्म में ही नहीं उनकी हर नज़्म हर ग़ज़ल बेहतरीन शायरी का नमूना है!
इस नज़्म का ज़िक्र विशेष तौर पे मैंने इसलिए किया क्योंकि मैं जब भी ये नज़्म पढता या सुनता हूँ तो मुझे एक बहुत ही बेहतरीन गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी की “किसी को उदास देख कर” नज़्म याद आ जाती है! साहिर साहिब की ये नज़्म मैं अपने कालेज के दिनों में अक्सर कविता उच्चारण प्रतियोगताओं के तहत मंच पर बोला करता था! साहिर साहिब अपनी इस नज़्म के अंत तक आते आते कहते हैं:
ये शाहराहों पे रंगीन साड़ियों की झलक
ये झोंपड़ों में गरीबों की बे-कफन लाशें
ये गली गली में बिकते जवान चेहरे
हसीन आँखों में अफ्सुर्दगी सी छाई हुई
…
ये ज़िल्लतें ये ग़ुलामी ये दौर-ए-मजबूरी
ये ग़म बहुत हैं मेरी जान ज़िन्दगी के लिए
उदास रहके मेरे दिल को और रंज न दे…
#OnFaiz
4 responses to “Geet,Geetkaari Aur Faiz-3”
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Hi,
I just wanted to know about your life. You write songs which defines pain ,Yes I am hurt deeply so I am thinking like wise, I want to won’t if you were ever hurt that makes you write such songs. If yes I would like to know your that story which hurt you so bad that you come up with words that redefines pain.
hello..irshad kamil sir.,
i want to work for you under/you
so please guide me,
my mo no. is 8238997880
with regards,
your’s fan
Jackson I write for pleasure, for me pain is also pleasure.
Rahul writing is a lonely job, but you can ask your queries here.