December 26, 2009

Geet, Geetkaari Aur Faiz-4

इन दोनों नज़्मों में ख्याल का मिल जाना मुझे बहुत थोडा सा समझ में आया लेकिन अंदाज़ का मिल जाना बिलकुल भी समझ में नहीं आया! मुझे ऐसा लगा जैसे साहिर ने फैज़ की हु-ब-हु नक़ल कर ली हो! कुछ परेशानी हुई साहिर साहिब पे थोड़ा गुस्सा भी आया ज़रा सा अफ़सोस भी हुआ! लेकिन मेरे ये सब एहसास उस दिन काफूर हो गए जब अचानक मेरी नज़र के आगे से फैज़ साहिब के करीबी दोस्त हमीद अख्तर का एक इंटरव्यू गुज़र गया! तब मुझे समझ में आया कि जब फैज़ साहिब की नज़्म छपी थी तो वो रिसाला किसी दोस्त ने साहिर को दिखाया था और कहा था कि साहिर तुम इस तरह की नज़्म कभी नहीं लिख सकते! मेरा अंदाज़ा ये है कि मन ही मन उन्होंने जवाब दिया होगा कि बोलके नहीं लिख कर दिखाऊंगा और उन्होंने हु-ब-हु फैज़ के अंदाज़ में और उसी एहसास में  नज़्म कह डाली!

मैं यहाँ फिर दोहराऊंगा कि फैज़ की शायरी को फ़िल्मी गीतकारों के संदर्भ में देखते हुए मैं किसी को छोटा या बड़ा लेखक साबित करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ! ये सिर्फ एक तुलनात्मक अध्ययन जैसा है! फैज़ साहिब की इसी नज़्म में, जिसका कि मैंने ऊपर ज़िक्र किया, एक पंक्ति है…”तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है”…निसंदेह आपको “चिराग़” फिल्म का वो गीत याद आ गया होगा जो सुनील दत्त गाते हैं:

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है

ये उठे सुबह चले ये झुकें शाम ढले

मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले…

मजरूह सुल्तानपूरी साहिब के लिखे इस गीत में फैज़ साहिब बकाइदगी से मौजूद हैं! फैज़ साहिब की इसी पंक्ति से प्रभावित होकर अनेक गीतकारों ने आँखों को विषय बनाकर गीत लिख डाले, जैसे शंकर जयकिशन के संगीत में “नैना” फिल्म का हमको तो जान से प्यारी हैं तुम्हारी आँखें, या आनंद बक्षी साहिब का लिखा जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करें जीने के लिए या फिर कैफ़ी आज़मी साहिब का लिखा हर तरफ अब यही अफ़साने हैं हम तेरी आँखों के दीवाने हैं !  और उनकी इस एक पंक्ति का प्रभाव मेरी पीढ़ी के गीतकारों तक बरक़रार है! हालाँकि ऐसा नहीं है कि उनकी इस पंक्ति से पहले फ़िल्मी गीतों में आँखों का प्रयोग नहीं हुआ था, बेशक हुआ था लेकिन उस प्रयोग का अंदाज़ ज़रा सा भिन्न था, जैसे: नैना बरसे रिमझिम रिमझिम पिया तोरे मिलने की आस, नैनों में बदरा छाये, अखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे या ऐसे ही कई और गीत, या फिर वो बहुत से गीत जो फैज़ की उक्त नज़्म से पहले लिखे गए, एक अलग तरह से आँखों की बात करते हैं! लेकिन धीरे धीरे फैज़ का अंदाज़ हावी हो गया फ़िल्मी गीतों पर! #OnFaiz

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