Sapna
सपना
ऐसा ही होना था
हालाँकि उम्मीद कम थी
मगर एक सलीके से टूट जाना था
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हमारे बीच था जो
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छूट जाना था कच्चा नील
देह में तुम्हारे लिए
.
उमर के खेत में हिम्मत बोनी थी
उखाड़ फैंकना था
मायूस दिनों का जंगली घास
अच्छी फसल के लिए टूट जाना था
हमारे बीच की दीवार को
छूट जाना था भरम
तुम्हारे बड़े होने का
हमारी आँख से
सभी ने देखना था
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सपना…
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ऐसा ही होना था
हालाँकि उम्मीद कम थी !
.
-==-
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Sapna
Aisa hi hona tha
Halanki umeed kam thi
Magar ek saleeke se toot jaana tha
.
Hamare beech tha jo
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Chhoot jaana tha kachcha neel
Deh mein tumhare liye
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Umar ke khet mein himmat boni thi
Ukhaad phainkna tha
Mayus dino ka jungle ghaas
Achchi fasal ke liye toot jaana tha
Hamare beech ki deewar ko
Chhoot jaana tha bhram
Tumhare bade hone ka
Hamari aankh se
Sabhi ne dekhna tha
.
Sapna…
.
Aisa hi hona tha
Halanki umeed kam thi !
-==-
5 responses to “Sapna”
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Hmmm…. beautiful melancholy……….poignant, impactful…progress of life is connected to dream as well as dreams are connected to progress. The relationship between hope and dream is also conveyed very beautifully. Nice poem.
SIR.. simply said deeply set the poem is another gem of your collection..
सपने हकी़क़त में कम ही उतरते हैं इसीलिये तो वो सपने होते हैं…सपने और हसरत में एक बारीक सा फ़र्क है कि सपने ज़्यादातर नींद में आते हैं और हसरतें जागती आँखों में आती हैं…जिन्हें जीवन में अगर उतारने की कोशिश हो तो उतरती भी है…मायूस दिनों के जंगली घास को उखाड़ फेंकने की हिम्मत अगर जागती आँखों में जुट जाये तो सपने पूरे होने की राह आसान हो जाती है…भ्रम बचते नहीं, उम्मीद कम नहीं होती और अपनी आँखों का सपना सबकी आँखों का सच बन जाता है…अच्छी कविता…
बहुत अच्छे इरशाद भाई
beautifully written as usual irshad. phrases are so earthy real..nice.