Geet, Geetkaari aur Faiz-1
[हिंदी फ़िल्मी गीतकारों पर फैज़ की शायरी का प्रभाव]
फैज़ पर और उनकी शायरी पर कुछ लिखना किसी के लिए भी शायद आसान नहीं! मेरे लिए तो ये और भी मुश्किल है क्योंकि व्यवसाय के आधार पर देखा जाये तो मैं एक ‘फ़िल्मी’ लेखक हूँ ‘इल्मी’ लेखक नहीं! इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए भी इस विषय पर सोचना अच्छा लग रहा है कि फैज़ का फ़िल्मी गीतों पर क्या असर रहा!
मेरे विचार से ये एक सच है कि हर इंसान, हर शायर, हर लेखक अपने आप में अलग है, और एक सच्चाई ये भी है कि वो अलग नहीं है! जो सम्बन्ध, जो समाज, जो पारिवारिक दायरे एक कवि या लेखक के हैं लगभग वैसे ही दूसरी के भी हैं! लगभग एक से परिवेश में रहते हुए जो अनुभव, एहसास या दृष्टिकोण किसी एक कवि या लेखक का हो सकता है वो किसी दूसरी का भी हो सकता है! हाँ, उस अनुभव या एहसास को कविता में उतारने का ढंग अवश्य भिन्न होगा! मिर्ज़ा ग़ालिब का बहुत ही प्रसिद्ध शे’र है…”…कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां और”…इस मिसरे पे ग़ौर करें तो हमे अन्दाज़ा होगा कि बयान की बात क्यों की है! इसी मिसरे में ऐसा भी हो सकता था…”कहते हैं कि ग़ालिब का है एहसास-ए-बयां और”…लेकिन शायद मिर्ज़ा ग़ालिब को ये पक्के तौर पे पता था कि दो लोगों का कभी कभार एहसास एक हो सकता है अंदाज़ एक नहीं हो सकता! #OnFaiz(IrshadKamil)
5 responses to “Geet, Geetkaari aur Faiz-1”
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इरशाद भाई, गुस्ताखी माफ़, मेरी नज़र में बयां तो दोनों में इस्तेमाल हुआ है. अंदाज़ से ‘ग़ालिब का अंदाज़ और है’ निश्चित हो गया, बयां करने का अहसास मेरी छोटी बुद्धि को समझ नहीं आया. परन्तु आपसे ज़रूर समझना, चाहूंगा. फ़िलहाल फैज़ साहब के बारे में ज़रूर समझना चाहूंगा. एक गरीब सा अनुवाद उनका मैंने भी करने की कोशिश की है. मुझे उनकी ग़ज़ल “गुलों में रंग भरे” में कुछ अलग ही रंग नज़र आते हैं – खासकर उनके जिन्नाह साहब के जाने का अफ़सोस. नज़र-ए-इनायत https://vineetrajkapoor.com/2016/06/10/poetry-faiz-ahmed-faiz-gulo-n-me-n-rang-bhare-translation/
ये लेख जारी है, जनाब।
Wow! Bilkul kayi baar hum ji kavita likhte h bilkul ussi ehsaas ki koi aur kavita likhi ja chuki hoti hai magar ‘andaz-e-bayan’ kabhi ek jaise ni hote.
Sir ye ‘misre’ ka kya arth hota hai?
Shakti, Kisi she’r ki ek pankti (Line) ko ‘misra’ kehte hain.
Thanks sir
U r the rockstar of lyricists