Geet, Geetkaari Aur Faiz-7
फैज़ का असर फ़िल्मी गीतों पर कभी सीधे तौर पे और कभी ज़रा घुमाव के साथ अक्सर और पर्याप्त देखा गया है! हिंदी फिल्म जगत की हमेशा याद रखी जाने वाली फिल्म ‘मदर इंडिया’ में शकील बदायूनी साहिब ने लिखा था:
दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे
रंग जीवन में नया लायो रे…
और फैज़ साहिब कहते हैं:
आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़
दुःख से भरपूर दिन तमाम हुए…
आज के गीतकारों में जावेद अख्तर और गुलज़ार साहिब के अलावा कितने गीतकार फैज़ साहिब को सही तौर से जानते हैं ये कहना मुश्किल है क्योंकि हम समकालीन गीतकार मिल बैठ कर कभी ये चर्चा नहीं करते कि हम क्या पढ़ लिख रहे या, पढ़ लिख रहे भी हैं या नहीं, बात चिंताजनक और अफ़सोस की है लेकिन सच है! अगर मैं अपनी थोड़ी बहुत ज़िम्मेदारी लूं तो मैं ये कह सकता हूँ कि मैंने थोड़ा बहुत उनको ज़रूर पढ़ने और जानने, समझने की कोशिश की है अपनी अदना सी समझ के अनुसार, वो भी शायद इसलिए क्योंकि मेरा साहित्य से जुड़ाव और प्रेम है, विशेष तौर पे काव्य से, चाहे वो भारत की किसी भाषा का हो या दुनिया की! मेरे अपने गीतों में न चाहते हुए फैज़ साहिब अपनी रंगत छोड़ जाते हैं, उदहारण के तौर पे ‘वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई’ फिल्म का मेरा एक गीत काफी प्रसिद्ध हुआ, जिसके बोल हैं:
तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
इश्क़ मज़हब इश्क़ मेरी ज़ात बन गयी
ये फिल्म में दोगाने के तौर पे भी आया है और सिर्फ राहत अली खां की आवाज़ में भी है! दोनों ही गीतों में अंतरे अलग अलग हैं, राहत साहिब के गीत का अंतरा कुछ यूँ है:
ऐसा मैं सौदाई हुआ धड़कने भी अपनी लगती हैं तेरी आहटें…
विश्वास कीजिये मैंने जान बूझ कर फैज़ साहिब का प्रभाव लेने की कोशिश नहीं की थी, लेकिन जब मुझे ये लेख लिखना था तो फैज़ साहिब को दोबारा पढ़ा और उनका ये शे’र मेरी नज़र के सामने से गुज़र गया, वो ये शे’र था:
फ़रेबे आरज़ू की सहल-अंगारी नहीं जाती
हम अपने दिल की धड़कन को तेरी आवाज़े-पा समझे…
#OnFaiz
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..नमन आपको..